नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि विरोधी पक्षों के बीच समझौता होने के बाद भी यौन उत्पीड़न के किसी मामले को बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि इस तरह के अपराधों का समाज पर गंभीर असर होता है. यह टिप्पणी राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की गई, जिसमें राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में एक स्कूल में 16 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी शिक्षक के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था. न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने संबंधित प्राथमिकी और आगे की सभी कार्यवाहियों को रद्द करने के लिए निर्धारित कानून को गलत तरीके से पढ.ा है और लागू किया है.
पीठ ने कहा, ”बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों को जघन्य और गंभीर माना जाना चाहिए. कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे अपराधों को निजी प्रकृति के अपराधों के रूप में हल्के में नहीं लिया जा सकता है और वास्तव में, ऐसे अपराधों को समाज के खिलाफ अपराध के रूप में लिया जाना चाहिए.” उन्होंने कहा, ”हम यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा कि इस मामले में पक्षों के बीच एक विवाद है जिसे सुलझाया जाना है और इसके अलावा सद्भाव बनाए रखने के लिए प्राथमिकी और उसके संबंध में आगे की सभी कार्यवाहियों को, संबंधित प्राथमिकी में तीसरे प्रतिवादी के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर ध्यान दिए बिना ही रद्द कर दिया जाना चाहिए.”
शीर्ष अदालत ने शिक्षक और पीड़िता के पिता की दलील को भी खारिज कर दिया जिन्होंने मामले में जनहित याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि जब किसी उच्च माध्यमिक विद्यालय में इस प्रकृति और गंभीरता की घटना कथित तौर पर घटी, वो भी एक शिक्षक ने उसे अंजाम दिया तो इसे महज विशुद्ध रूप से निजी प्रकृति का अपराध नहीं कहा जा सकता जिसका समाज पर कोई असर नहीं होगा.