बेंगलुरु. कर्नाटक मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जातियों (एससी) के बीच आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के लिए सोमवार को अपनी सहमति दे दी और इस संबंध में डेटा जुटाने के लिए एक आयोग गठित करने का फैसला किया. मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एच के पाटिल ने संवाददाताओं को बताया कि उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया जाएगा.
पाटिल ने कहा, ”कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के संबंध में विचार-विमर्श हुआ. अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण के संबंध में उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले के मद्देनजर, मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण प्रदान करने को अपनी मंजूरी दे दी.” उन्होंने कहा, ”आंकड़े प्राप्त करने के बाद अगले कदम पर निर्णय लिया जाएगा. सरकार समिति से तीन महीने में रिपोर्ट सौंपने को कहेगी.” पाटिल ने कहा कि मंत्रिमंडल ने आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने तक आगामी सभी र्भितयों को कम से कम तीन महीने के लिए स्थगित करने का भी निर्णय लिया है.
उन्होंने कहा, ”आज से यदि किसी भर्ती की अधिसूचना जारी की जानी है तो वह प्रक्रिया नहीं होगी, यह आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद ही शुरू होगी.” विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत पूर्ववर्ती सरकार के मंत्रिमंडल ने आंतरिक आरक्षण पर निर्णय लिया था, जिसमें केंद्र सरकार को अनुसूचित जाति (लेफ्ट) के लिए छह प्रतिशत, अनुसूचित जाति (राइट) के लिए 5.5 प्रतिशत, ”स्पृश्य” (बंजारा, भोवी, कोरचा, कुरुमा) के लिए 4.5 प्रतिशत और अन्य के लिए एक प्रतिशत आंतरिक कोटा की सिफारिश की गई थी. उच्चतम न्यायालय ने एक अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके.