देश मुद्रास्फीति में एक और तेजी का जोखिम नहीं ले सकता: आरबीआई गवर्नर दास

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने मौद्रिक नीति समिति की इस महीने हुई बैठक में कहा कि देश मुद्रास्फीति में एक और तेजी के दौर का जोखिम नहीं उठा सकता है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में सबसे अच्छा तरीका लचीला रुख अपनाना और मुद्रास्फीति के केंद्रीय बैंक के लक्ष्य के अनुरूप स्थायी रूप से आने की प्रतीक्षा करना होगा.

उन्होंने इस महीने सात से नौ अक्टूबर को हुई बैठक में नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में मतदान करते हुए यह बात कही.
बुधवार को जारी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के ब्योरे के अनुसार दास ने कहा, ”मौद्रिक नीति केवल मूल्य स्तर पर स्थिरता बना कर ही सतत रूप से आर्थिक वृद्धि का समर्थन कर सकती है.” बैठक में एमपीसी ने लगातार 10वीं बार प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का फैसला किया. छह सदस्यों में से पांच ने इसके पक्ष में जबकि एक ने इसमें कमी लाने के समर्थन में मतदान किया था.

हालांकि, समिति ने सर्वसम्मति से पहले के उदार रुख को वापस लेने के रुख बदलाव करते हुए इसे तटस्थ करने का निर्णय किया.
एमपीसी के पुनर्गठन के बाद यह उसकी पहली बैठक थी. तीन नवनियुक्त बाहरी सदस्य राम सिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार हैं. बैठक के ब्योरे के अनुसार, दास ने कहा कि मौद्रिक नीति केवल मूल्य स्थिरता बनाए रखकर ही सतत रूप से आर्थिक वृद्धि का समर्थन कर सकती है.

उन्होंने कहा, ”सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, मैं नीतिगत दर रेपो को 6.5 प्रतिशत पर अपरिर्वितत रखते हुए मौजूदा रुख को ‘तटस्थ’ में बदलने के लिए मतदान करता हूं.” दास ने कहा कि कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिरता और मजबूती की तस्वीर पेश करती है. मुद्रास्फीति और वृद्धि के बीच संतुलन बना हुआ है. उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति में निकट अवधि में बढ़ोतरी के बावजूद, साल के अंत में और अगले वर्ष की शुरुआत में सकल (हेडलाइन) मुद्रास्फीति चार प्रतिशत के लक्ष्य के आसपास रहने का अनुमान है.

दास ने कहा, ”कुल मिलाकर उदार रुख को वापस लेकर तटस्थ मौद्रिक नीति रुख में बदलाव के लिए परिस्थितियां उपयुक्त हैं. यह उभरते दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करने के लिए मौद्रिक नीति के स्तर पर अधिक लचीलापन लाएगा और विकल्प प्रदान करेगा. यह वैश्विक स्तर पर बढ़ते तनाव और जिंसों के दाम में उतार-चढ़ाव के साथ अनिश्चितताओं पर नजर रखने के लिए भी गुंजाइश देता है….” इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने कहा था कि जब तक मुद्रास्फीति स्थायी रूप से लक्ष्य के करीब नहीं आती है, नीतिगत दर के संदर्भ में इंतजार करो और मूल्यांकन करो का रुख रखना उचित होगा. उन्होंने बैठक में नीतिगत दर पर यथास्थिति बनाए रखने लेकिन रुख को तटस्थ करने के लिए मतदान किया.

एक अन्य सदस्य आरबीआई के कार्यकारी निदेशक राजीव रंजन ने कहा था कि अब और दिसंबर के बीच, कुछ अनिश्चितताओं को लेकर चीजें अधिक साफ होंगी. इन अनिश्चितताओं में अमेरिका में चुनाव, वैश्विक स्तर पर जोखिम और चीनी राजकोषीय प्रोत्साहन तथा वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतें शामिल हैं.

रंजन ने कहा था, ”इस समय, भारत की मजबूत वृद्धि गाथा हमें मुद्रास्फीति पर ध्यान देते रहने और नीतिगत दर को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने में मदद कर रही है. इसीलिए, मैं नीतिगत दर पर यथास्थिति और रुख को बदलकर तटस्थ करने के पक्ष में मतदान कर रहा हूं.” बाहरी सदस्य नागेश कुमार ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती के पक्ष में मतदान किया. उन्होंने कहा था कि यह आरबीआई के लिए मौद्रिक नीति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने का एक उपयुक्त क्षण है. पुनर्गठित एमपीसी के दो अन्य बाहरी सदस्यों… सौगत भट्टाचार्य और राम सिंह ने भी नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया. हालांकि, उन्होंने रुख को बदलकर तटस्थ करने की बात कही.

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