गांधीनगर. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा कि उनका मंत्रालय चार महीने के भीतर नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड के चार्टर में बदलाव करेगा ताकि इसे और अधिक प्रासंगिक और उपयोगी बनाया जा सके. शाह ने यहां नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड के 14वें अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अगर देश की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड की भूमिका नहीं बदली गई तो वे अप्रासंगिक हो जाएंगे.
मंत्री ने कहा, ”मेरा मानना है कि आज देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इन दोनों संगठनों की भूमिका पर पुर्निवचार करने की जरूरत है ताकि उन्हें और अधिक प्रासंगिक बनाया जा सके.” उन्होंने कहा कि ये बदलाव चार महीने में लागू हो जाएंगे और इसमें कई नयी चीजें जोड़ी जाएंगी. शाह ने कहा, ”…हम इसे प्रासंगिक बनाएंगे और उपयोगी बनाने की कोशिश करेंगे तथा इसमें नयी चेतना, नया जीवन लाने की दिशा में काम करेंगे.” उन्होंने कहा कि अगर किसी संगठन का चार्टर पचास साल तक नहीं बदला जाता है, तो संगठन और चार्टर दोनों ही अप्रासंगिक हो जाते हैं.
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ”भारत ने पिछले पचास वर्षों में आमूलचूल परिवर्तन देखे हैं. प्रौद्योगिकी की वजह से हमारी आवश्यकताएं बदल गई हैं और देश आगे बढ. गया है. भले ही कोई युद्ध न हो, लेकिन (नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड) आपदा प्रबंधन और यातायात प्रबंधन से जुड़ सकते हैं.” शाह ने कुछ साल पहले पारित उच्चतम न्यायालय के एक फैसले पर भी आपत्ति जताई, जिसमें ”नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड को उनकी आय से जोड़ने का प्रयास किया गया था.”
उन्होंने कहा, ”(उनकी आय) समय रहते बढ.ाई जानी चाहिए, लेकिन मूल भावना सेवा की है. अगर हम इस भावना को फैसले के जरिए मार देते हैं, तो यह संगठन लगभग मृत हो जाएगा और एक साधारण नौकरी जैसा काम बनकर रह जाएगा.” शाह ने कहा कि होम गार्ड और नागरिक के वर्तमान चार्टर के अनुसार, इसके र्किमयों को युद्ध की आपात स्थितियों के लिए लोगों को तैयार करना, नागरिकों की रक्षा करना, युद्ध के प्रभावों से बचने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना, अहिंसक नागरिक प्रतिरोध के लिए सोच पैदा करना, समुदायों को संगठित करना और युद्ध से क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे की मरम्मत और मनोबल बढ.ाने में सहायता करना आवश्यक है.
उन्होंने कहा कि दोनों संगठनों ने आपदा प्रबंधन में सराहनीय कार्य किया है, लेकिन उनके र्किमयों को प्रशिक्षण और सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है तथा आपदा प्रबंधन में उनकी भूमिका चार्टर में परिभाषित की जानी चाहिए. शाह ने कोविड-19 महामारी के दौरान होमगार्ड और नागरिक सुरक्षा र्किमयों की सेवाओं के लिए उन्हें बधाई दी. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि महामारी के दौरान सेवा करते हुए 27 जवानों ने अपनी जान गंवाई. उन्होंने कहा कि स्थानीय कानून व्यवस्था में सहायता के लिए उनके लिए एक खाका भी होना चाहिए.
शाह ने कहा कि उन्हें छात्रों के बीच में ही पढ.ाई छोड़ने की दर को कम करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए काम करके शिक्षा क्षेत्र में भी मदद करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि युवाओं को इन संगठनों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ”दुर्भाग्य से, सेवा को आय से जोड़ दिया गया…जैसे एनसीसी (राष्ट्रीय कैडेट कोर) और एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना) समाज के सभी वर्गों के लोगों को आर्किषत करते हैं, होम गार्ड और नागरिक सुरक्षा में भी समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए और उन्हें सेवा और देश के विकास और सुरक्षा का साधन बनना चाहिए.”
कानूनों में स्पष्टता की कमी से न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत होती है : अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कानूनों में स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर देते हुए मंगलवार को कहा कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब कानून बनाने के लिए जिम्मेदार लोग इसमें अस्पष्टता छोड़ देते हैं. केंद्रीय मंत्री विधानसभा सचिवालय के अधिकारियों के लिए विधान तैयार करने के प्रशिक्षण संबंधी कार्यशाला के तहत गुजरात विधानसभा को संबोधित कर रहे थे.
शाह ने सदन को संबोधित करते हुए कहा, ”मैं जानता हूं कि मैं जो कुछ भी बोलने जा रहा हूं, उससे विवाद पैदा होगा, लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करेगी, जब आप कानून का मसौदा तैयार करने में कोई अस्पष्टता छोड़ देंगे. कानून में जितनी अधिक स्पष्टता होगी, अदालतों का हस्तक्षेप उतना ही कम होगा.” सदन में विधायकों, सांसदों के साथ-साथ पूर्व विधायकों और अध्यक्षों की भी उपस्थिति थी.
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कदम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ”जब अनुच्छेद का मसौदा तैयार किया गया था, तो यह स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यह संविधान का एक अस्थायी प्रावधान है जिसे संसद में साधारण बहुमत से पारित किए जाने वाले संशोधन के माध्यम से हटाया जा सकता है.” उन्होंने कहा, ”अब, अगर यह लिखा होता कि यह अस्थायी के बजाय एक संवैधानिक प्रावधान है, तो हमें मतदान के दौरान साधारण बहुमत के बजाय दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती. इस प्रकार, अधिक स्पष्टता से न्यायिक हस्तक्षेप कम होता है.” अगस्त 2019 में केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को खत्म कर दिया था. बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी इसे अस्थायी प्रावधान बताते हुए निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा.
शाह ने दावा किया कि कानूनों का ”खराब मसौदा” ही मुख्य कारण है कि आज विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा है. उन्होंने कहा, ”हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं के बारे में बहुत स्पष्ट है. इसमें कहा गया है कि सरकार नीतियां बनाएगी और विधायिका उन नीतियों के अनुसार कानून पारित करेगी. न्यायपालिका कानूनों को परिभाषित करेगी और कार्यपालिका उन्हें लागू करेगी. लेकिन कानूनों को सही तरीके से तैयार नहीं किए जाने के कारण आज इन तीनों के बीच की रेखा धुंधली हो गई हैं.” शाह ने कहा कि ”कानून बनाने की कला” धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक विधान सभा को अपने कर्मचारियों के लिए मसौदा तैयार करने के कौशल को बढ़ाने को लेकर ऐसी कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए.
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों को यह मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए कि कानून में क्या शामिल किया जाए और कौन से प्रावधान उस कानून के नियमों का हिस्सा बनने चाहिए. शाह ने कहा कि डॉ. बी. आर. आंबेडकर के नेतृत्व में तैयार और संपादित भारत का संविधान विधान तैयार करने के मामले में पूरी दुनिया में सबसे आदर्श उदाहरण है.
उन्होंने कहा, ”उस समय संविधान सभा में 72 बैरिस्टर शामिल थे…उनका लगभग 14 प्रतिशत समय मौलिक अधिकारों पर चर्चा करने में व्यतीत हुआ. ऐसी गहन चर्चाओं के बाद हमारा संविधान तैयार हुआ. और आज, कुछ गैर सरकारी संगठन हमें मौलिक अधिकारों के मुद्दे पर सलाह देते हैं.” भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता ने कहा कि किसी भी कानून का मसौदा तैयार करते समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए और आम आदमी को भी इसकी भाषा समझ में आनी चाहिए.
उदाहरण देते हुए, शाह ने कहा कि तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देशानुसार भारतीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं. शाह ने कहा, ”अगले तीन-चार साल में जब ये कानून पूरी तरह लागू हो जाएंगे, प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई तक, तीन साल के भीतर न्याय मिलेगा. आने वाले दिनों में यह सुधार दुनिया का सबसे बड़ा सुधार माना जाएगा.”