नयी दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भूजल की घटती गुणवत्ता और मात्रा पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मंगलवार को जल संसाधन के संरक्षण में सामूहिक उत्तरदायित्व की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. राष्ट्रपति ने भारत के जल संसाधनों की गंभीर स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि जल आपूर्ति की सुरक्षा के लिए तत्काल और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है. उन्होंने आगाह किया कि संरक्षण के प्रयासों के बिना समाज प्रगति नहीं कर सकता.
राष्ट्रपति मुर्मू ने मंगलवार को राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रदान करते हुए अपने संबोधन में कहा, ”भूजल तेजी से कम हो रहा है और प्रदूषण स्थिति को बदतर बना रहा है.” उन्होंने जीवन के सभी पहलुओं को बनाए रखने में पानी की आवश्यक भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने इस बात को दोहराया कि स्वच्छ पानी तक पहुंच सिर्फ एक आवश्यकता नहीं है बल्कि एक मौलिक मानवाधिकार है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और वंचित समुदायों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है. मुर्मू ने पानी की कमी के बारे में जागरूकता और वास्तविक कदम के बीच अंतर की ओर भी इशारा किया.
उन्होंने जल संचयन और संरक्षण कार्यक्रमों सहित सरकार की विभिन्न पहल की सराहना की, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि सामुदायिक स्तर पर और अधिक काम करने की जरूरत है. मुर्मू ने भारत में जल संरक्षण की समृद्ध परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि पूर्वज पानी की कमी का प्रबंधन करने के लिए गांवों और मंदिरों के पास जलाशय और तालाब बनवाते थे.
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि इस सदियों पुराने ज्ञान को भुला दिया जा रहा है तथा इनमें से कई जल निकायों पर अब निजी स्वार्थवश अतिक्रमण किया जा रहा है. इससे सूखे की स्थिति में पानी की उपलब्धता प्रभावित होती है और अत्यधिक बारिश होने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय जल पुरस्कार के विजेताओं की उनके प्रयासों के लिए सराहना की और आग्रह किया कि उनकी सर्वोत्तम प्रथाओं को व्यापक रूप से साझा किया जाए. जल शक्ति मंत्रालय के तहत जल संसाधन विभाग द्वारा आयोजित पुरस्कारों में नौ श्रेणियों में प्रयासों को मान्यता दी गई, जिसमें ओडिशा ने सर्वश्रेष्ठ राज्य श्रेणी में शीर्ष स्थान हासिल किया. इसके बाद उत्तर प्रदेश दूसरे तथा गुजरात और पुडुचेरी संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर रहे. सरकार के ‘जल समृद्ध भारत’ के दृष्टिकोण के अनुरूप जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2018 में राष्ट्रीय जल पुरस्कार शुरू किए गए थे.